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खुशियाँ
खुशियाँ आँखों ही आँखों में कुछ कहते जाना मौन रहे पर मुस्कुराते हुए आना दबे पाँव आना जीवन में मचलते हुए हंसतें जाना ...

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हमेशा की तरह ख़ामोश पर पुकारती माँ की आँखें ताकती दहलीज़, मायूसी समेटे बैठा आँगन खिड़की से झांकती बचपन की यादें इंतज़ार...
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खुशियाँ आँखों ही आँखों में कुछ कहते जाना मौन रहे पर मुस्कुराते हुए आना दबे पाँव आना जीवन में मचलते हुए हंसतें जाना ...
हो खुद्दारी की चादर
ReplyDeleteमिले सुकून से दो वक़्त खाना
वो पल निगाहें तलाश रही जिंदगी में।...बहुत सुन्दर
हो खुद्दारी की चादर
ReplyDeleteमिले सुकून से दो वक़्त खाना
वो पल निगाहें तलाश रही जिंदगी में।...बहुत सुन्दर
वाह!
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा कविता बिटिया
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
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