Kavita Saini
हो खुद्दारी की चादर मिले सुकून से दो वक़्त खाना वो पल निगाहें तलाश रही जिंदगी में।...बहुत सुन्दर
वाह!
बहुत सुंदर लिखा कविता बिटिया
बहुत धन्यवाद आपका
बहुत सुंदर रचना
खुशियाँ आँखों ही आँखों में कुछ कहते जाना मौन रहे पर मुस्कुराते हुए आना दबे पाँव आना जीवन में मचलते हुए हंसतें जाना ...
हो खुद्दारी की चादर
ReplyDeleteमिले सुकून से दो वक़्त खाना
वो पल निगाहें तलाश रही जिंदगी में।...बहुत सुन्दर
हो खुद्दारी की चादर
ReplyDeleteमिले सुकून से दो वक़्त खाना
वो पल निगाहें तलाश रही जिंदगी में।...बहुत सुन्दर
वाह!
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा कविता बिटिया
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDelete