ग़रीबी










मुस्कुराती जिंदगी 
सिमट रही अभावों  में 

सिमट रही 
बच्चों की मुस्कुराहट 
ग़रीबी के लुका छिपी  खेल  में 

 लाले पड़ रहे
दो वक़्त की रोटी के 
वक़्त के सियासी खेल में 

हो खुद्दारी की चादर 
मिले सुकून से दो वक़्त खाना 
वो पल निगाहें तलाश रही जिंदगी में।

7 comments:

  1. हो खुद्दारी की चादर
    मिले सुकून से दो वक़्त खाना
    वो पल निगाहें तलाश रही जिंदगी में।...बहुत सुन्दर

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  2. हो खुद्दारी की चादर
    मिले सुकून से दो वक़्त खाना
    वो पल निगाहें तलाश रही जिंदगी में।...बहुत सुन्दर

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  3. बहुत सुंदर लिखा कविता बिटिया

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  4. बहुत धन्यवाद आपका

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  5. बहुत धन्यवाद आपका

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  6. बहुत सुंदर रचना

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