हमेशा की तरह













हमेशा की तरह
ख़ामोश
पर पुकारती माँ  की आँखें

ताकती दहलीज़,
 मायूसी समेटे बैठा आँगन

खिड़की से झांकती बचपन की यादें
इंतज़ार में बैठी है मेरे।

विरह










साजन साजन मैं पुकारु ,साजन है प्रदेश
देख ! सखी द्वार पर आयो न कोई संदेश

 काक कहे  प्रीत  संदेश,हिवड़ो करे पुकार
मन बैरी बेचैन हुयो, नयनों से बरसे प्यार

मन को  मोहे प्रीत रंग,रंगों से करू श्रृंगार
सखी साजन आए द्वार पर, छलिया है संसार।

ग़रीबी










मुस्कुराती जिंदगी 
सिमट रही अभावों  में 

सिमट रही 
बच्चों की मुस्कुराहट 
ग़रीबी के लुका छिपी  खेल  में 

 लाले पड़ रहे
दो वक़्त की रोटी के 
वक़्त के सियासी खेल में 

हो खुद्दारी की चादर 
मिले सुकून से दो वक़्त खाना 
वो पल निगाहें तलाश रही जिंदगी में।

खुशियाँ

खुशियाँ आँखों ही आँखों में कुछ कहते जाना मौन  रहे  पर मुस्कुराते  हुए  आना दबे पाँव  आना  जीवन में  मचलते हुए  हंसतें जाना  ...